Friday, September 30, 2016

कला

कला को ज़िंदा रखना होगा .. 





Thursday, September 29, 2016

अब उठ, उठ कर चल...

अब उठ, उठ कर चल...


अतीत के अँधेरे से बाहर निकल
एक नया सबेरा नजर आयेगा 
खुशबुओं से महकेगी फ़ुलवारी
हर पत्ता ओस को सहलायेगा
उजली किरण से रोशन होगा आशियाँ
और हर तरफ तू ही तू जगमगाएगा
जमाना करेगा तुझे याद हमेशा
और ज़माने में तेरा नूर नज़र आएगा ....
-अर्चना


Tuesday, September 13, 2016

कावेरी का अंत

नारद - नारायण,नारायण..
(आवाज सुनते ही )
भगवन - कहो नारद,कैसे हो?कब लौटे पृथ्वीलोक से?कैसी रही नदी मिलन यात्रा?कावेरी कैसी है?
नारद-साँस तो लें भगवन, ...न पूछें तो ही अच्छा है, बेचारी तप रही है आग से .... उसी का संदेस लाया हूँ ,कह रही थी - मुझे बर्फीली नदी बनना है ...गन्दगी तो सहन कर लूँगी पर आग में झुलस कर तंग आ गई हूँ,बर्फ होकर बहूंगी तो कुछ तो पानी बचेगा..और नहीं बही तो जिसके हिस्से में जितनी हूँ वहीँ जम रहूंगी ... मेरा पानी बचाने... आग को तो परेशान नहीं करेंगे ये आँखों का पानी सूखाए लोग!
भगवन- जाओ नारद ,कावेरी को साथ ले आओ...बहुत बह ली ...लोग तो उसे चुल्लू भर न उपयोग कर पा रहे... :-(

और एक नदी का अंत हुआ....

Thursday, September 8, 2016

फर्क

करीब दो साल पहले फेसबुक के एक ग्रुप में एक वीकेंड टास्क दिया गया था - चार शब्दों - सपने, मूँछ, घोड़ा,और फूल को शामिल करते हुए एक हास्य कविता लिखना था। ...
तभी ये बनी थी -


फर्क - हास्य कविता 
तब
सपने में देखा एक राजकुमार
मूँछें थी काली और घोड़े पे सवार
आंखों ही आँखों में उससे हो गया प्यार
फ़िर पहनाया उसने मुझको फूलों का हार...
और अब
अबे! ओ मूँछों वाले
देखी है अपनी मूँछ
मुझे तो लगती है
ये घोड़े की पूँछ
कह भी मत बैठना
"यू आर सो कूल"
सपने में भी लाया फूल
तो चाटेगा यहाँ धूल ...
-अर्चना

दिल है छोटा -सा

प्रतापगढ़ दुर्ग - महाबलेश्वर