Friday, July 14, 2017

चुपचाप रहने के दिन

ये बारिशों के दिन। ..
चुपचाप रहने के दिन ....

मुझे और तुम्हें चुप रहकर
साँसों की धुन पर
सुनना है प्रकृति को ....
. उसके संगीत को ...
झींगुर के गान को ..
मेंढक की टर्र -टर्र को...
कोयल की कूक को...
और अपने दिल में उठती हूक को। ....
....
बोलेंगी सिर्फ बुँदे
और झरते-झूमते पेड़
हवा  बहते हुए इतराएगी...
और
अल्हड़ सी चाल होगी नदिया की

चुप रहकर भी
सरसराहट होगी
मौन में भी एक आहट होगी
...
उफ़! ये बारिशों के दिन ..
चुपचाप रहने के दिन।
-अर्चना

13 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मेरे मन को हर्षित करने वाली कविता।

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर बरसात के दिन.

yashoda Agrawal said...

प्यारी कविता
सादर

संध्या शर्मा said...

बोलेंगी सिर्फ बून्दनियाँ
चुपचाप रहने के दिन आए
बहुत सुंदर भाव, प्रकृति को महसूस करना ही सच्चा जीना है....

संध्या शर्मा said...

बोलेंगी सिर्फ बून्दनियाँ
चुपचाप रहने के दिन आए
बहुत सुंदर भाव, प्रकृति को महसूस करना ही सच्चा जीना है....

संजय भास्‍कर said...

एहसासों को बखूबी उतारा है शब्दों में....बहुत ख़ूब मासी जी

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाणी गीत said...

बारिश अपने साथ चुप भी लाती है ...

कविता रावत said...


बरसात यानी बरसती बूंदों के बोलने के दिन .........बस चुपचाप सुनते रहो
बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2017) को "धुँधली सी रोशनी है" (चर्चा अंक-2667) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

संध्या शर्मा said...

बोलेंगी सिर्फ बून्दनियाँ
चुपचाप रहने के दिन आए
बहुत सुंदर भाव, प्रकृति को महसूस करना ही सच्चा जीना है....

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहुत सुन्दर!!